अभिनेता अभय वर्मा इन दिनों अपनी फिल्म ‘मुंजा’ की सफलता का आनंद ले रहे हैं। हॉरर-कॉमेडी फिल्म ‘मुंजा’ दर्शकों को बेहद पसंद आई है। बॉक्स ऑफिस पर फिल्म ने जबर्दस्त कमाई की है। अभय वर्मा ने हाल ही में खुलासा किया कि उन्होंने दिवंगत इरफान खान की आखिरी फिल्म ‘अंग्रेजी मीडियम’ में एक भूमिका ठुकरा दी थी। अभय ‘द फैमिली मैन’ और ‘ऐ वतन मेरे वतन’ में अपने शानदार अभिनय से सभी को ध्यान अपनी ओर खींच चुके हैं। अभिनेता ने ‘अंग्रेजी मीडियम’ को ठुकराने के पछतावे के बारे में खुलकर बात की।

अभय वर्मा – फोटो : इंस्टाग्राम @verma.abhay_
अभय वर्मा ने एक बातचीत में बताया कि फिल्म निर्माता दिनेश विजान के साथ काम करने का उनका सपना साल 2012 की फिल्म ‘कॉकटेल’ देखने के बाद शुरू हुआ। फिल्म ‘मुंजा’ में उन्हें दिनेश विजान के साथ काम करने का पहला मौका मिला। उन्होंने इस दौरान कहा, ‘मुझे अंग्रेजी मीडियम में काम करने का ऑफर मिला था। मगर किसी कारण यह सफल नहीं हुआ।’

इरफान खान और अभय वर्मा – फोटो : इंस्टाग्राम
अभिनेता ने कहा, ‘मुझे इसका बहुत अफसोस है, क्योंकि यह इरफान सर की आखिरी फिल्म थी। अगर मुझे एक फ्रेम में भी उनके बगल में खड़े होने का मौका मिल जाता, तो यह मेरे लिए सबसे बड़ा पुरस्कार होता।’ उन्होंने बताया कि उन्होंने भूमिका इसलिए ठुकरा दी थी, क्योंकि यह छोटा किरदार था और उन्हें एक अन्य फिल्म में मुख्य किरदार ऑफर किया गया था, जो कभी नहीं हुई।

अभय वर्मा – फोटो : इंस्टाग्राम
अपनी पिछली भूमिकाओं पर बात करते हुए अभय ने कहा कि उनके प्रभावशाली प्रदर्शनों के बावजूद, किसी ने भी उन्हें वह पहचान नहीं दिलाई, जो उन्हें अब ‘मुंजा’ के लिए मिल रही है। उन्होंने द फैमिली मैन के सेट पर अपने सकारात्मक अनुभव को याद करते हुए कहा, ‘द फैमिली मैन से मुझे एक बड़ी सकारात्मक बात सीखने को मिली कि अगर आप अपने जीवन में पांच दिन भी ईमानदारी से काम करते हैं, तो यह आपको 50 साल तक पहचान दिलाएगा।’

मुंजा – फोटो
‘मुंजा’ पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि फिल्म के लिए मिल रहे प्यार का सफर आसान नहीं था। उन्होंने करियर में आगे बढ़ने से पहले फिल्म को मिलने वाली प्रतिक्रिया देखने के लिए डेढ़ साल से ज्यादा समय का इंतजार किया। उन्होंने कहा, ‘मैंने किसी तरह अपनी बचत से उस समय का प्रबंधन किया, लेकिन मुझे बहुत त्याग भी करना पड़ा। मैं डेढ़ साल से ज्यादा समय से किसी रेस्टोरेंट में नहीं गया हूं। पिछले तीन-चार महीनों में, मुझे थोड़ा घुटन भी महसूस होने लगी थी। मगर शुक्र है कि इंतजार सफल रहा। वरना मेरा पानीपत का बैग लगभग पैक ही हो गया था।’
स्रोत: अमर उजाला