Rekha Birthday Special: ‘रेखा की मोहब्बत, जो कभी हो ना सकी मुकम्मल’, जानें एक्टिंग करियर से सिंदूर लगाने का रहस्य

Rekha Birthday Special: ‘रेखा की मोहब्बत, जो कभी हो ना सकी मुकम्मल’, जानें एक्टिंग करियर से सिंदूर लगाने का रहस्य

Rekha Birthday Special: ‘रेखा की मोहब्बत, जो कभी हो ना सकी मुकम्मल’, जानें एक्टिंग करियर से सिंदूर लगाने का रहस्य

एंटरटेनमेंट डेस्क। रेखा एक ऐसा नाम जो न सिर्फ खूबसूरती और अदाकारी का पर्याय है, बल्कि संघर्ष, आत्मविश्वास और करिश्मे की मिसाल भी है। 10 अक्टूबर 1954 को जन्मी भानुरेखा गणेशन उर्फ रेखा आज अपना 71वां जन्मदिन मना रही हैं।

रेखा ने सिर्फ 16 साल की उम्र में फिल्मी सफर की शुरुआत की थी, और आज भी वो बॉलीवुड की सबसे रहस्यमयी और आइकॉनिक अभिनेत्रियों में गिनी जाती हैं।

तेलुगु सिनेमा से बॉलीवुड की ‘सावन भादों’ बनी पहचान

रेखा ने करियर की शुरुआत तेलुगु फिल्म ‘रंगुला रत्नम’ से बतौर बाल कलाकार की थी। बतौर लीड एक्ट्रेस उनका पहला मौका कन्नड़ फिल्म ‘ऑपरेशन जैकपॉट नल्ली सीआईडी 999’ से मिला, जिसमें उनके साथ सुपरस्टार राजकुमार थे, लेकिन 1970 में आई ‘सावन भादों’ ने उन्हें रातोंरात स्टार बना दिया। इसी फिल्म से शुरू हुई उनकी चमकदार बॉलीवुड यात्रा।

सांवली सलोनी’ रेखा का उड़ाया मजाक

हिंदी फिल्मों में एंट्री के शुरुआती दिनों में रेखा को उनके रंग, लुक और एक्सेंट की वजह से खूब आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। लोग कहते थे -‘वो तो फिल्मों में बस गुड़िया की तरह रखी जाती हैं, अभिनय उनसे होता नहीं।’ यह बातें उनके आत्मविश्वास को तोड़ने लगीं। उन्हें लगता था कि वो इस इंडस्ट्री में टिक नहीं पाएंगी।

ऐसे लिया रेखा ने बदला

रेखा ने खुद को पूरी तरह बदलने का फैसला किया। उन्होंने योग अपनाया, वजन घटाया और खुद पर काम करना शुरू किया। 1977 के बाद रेखा का ट्रांसफॉर्मेशन बॉलीवुड की सबसे बड़ी प्रेरणाओं में से एक बन गया।

1978 में आई फिल्म ‘घर’ में उन्होंने रेप विक्टिम का किरदार निभाकर आलोचकों को चुप करा दिया। इसके बाद ‘मुकद्दर का सिकंदर’, ‘सुहाग’, ‘खूबसूरत’ और ‘उमराव जान’ जैसी फिल्मों ने उन्हें स्टारडम की ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया।

तवायफ से लेकर चुलबुली लड़की तक – हर रोल में छोड़ी छाप

रेखा ने हर किरदार में जान डाल दी – ‘उमराव जान’ में तवायफ के दर्द को महसूस करवाया,

‘खूबसूरत’ में अपने जोशीले अंदाज से दर्शकों को हंसा दिया और ‘खून भरी मांग’ में बदले की आग से दर्शकों को रोमांचित किया। उनके हर किरदार ने एक नया मानक तय किया।

रेखा की उपलब्धियां

1981 – उमराव जान के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार

2010 – पद्मश्री सम्मान

1970 से 1990 के बीच की उनकी फिल्में – ‘मुकद्दर का सिकंदर’, ‘सिलसिला’, ‘मिस्टर नटवरलाल’, ‘बीवी हो तो ऐसी’, ‘खिलाड़ियों का खिलाड़ी’ – आज भी क्लासिक मानी जाती हैं।

निजी जिंदगी और सिंदूर का रहस्य

रेखा की निजी जिंदगी हमेशा चर्चा में रही। उनका नाम कई सितारों से जुड़ा – जिनमें अमिताभ बच्चन, जितेंद्र, और विनोद मेहरा शामिल रहे। 1990 में उन्होंने बिजनेसमैन मुकेश अग्रवाल से शादी की, लेकिन कुछ महीनों बाद उन्होंने आत्महत्या कर ली। उसके बाद रेखा ने खुद को दुनिया से अलग कर लिया और आज भी सिंगल लाइफ जी रही हैं।

रेखा सिंदूर क्यों लगाती हैं?

1982 के एक नेशनल अवॉर्ड समारोह में जब उनसे यह सवाल पूछा गया, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा – ‘मैं जिस शहर से आती हूं, वहां सिंदूर लगाना आम बात है। ये फैशन है, और मुझे लगता है सिंदूर मुझ पर अच्छा लगता है।’

आज भी हैं बॉलीवुड की ‘एवरग्रीन क्वीन’

71 की उम्र में भी रेखा की ग्रेस, सादगी और रहस्यमयी शख्सियत उन्हें भीड़ से अलग बनाती है।

वो न सिर्फ बॉलीवुड की ‘सदाबहार दिवा’ हैं, बल्कि हर उस इंसान की प्रेरणा हैं जिसने मुश्किलों के बीच खुद को नया रूप दिया है।