कहते हैं कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है यानी बोरियत की स्थिति में दिमाग में खुराफाती विचार आते हैं। साइकोलॉजिकल जर्नल ‘मोटिवेशन एंड इमोशन’ में पब्लिश एक नई रिसर्च के मुताबिक बोरियत से मन में नॉन सुसाइडल सेल्फ हार्मिंग ख्याल आ सकते हैं। इसका मतलब है कि खाली बैठने से खुद को चोट पहुंचाने या किसी खतरनाक काम से अपना मन बहलाने की सोच आ सकती है।
हालांकि यह रिसर्च ‘बोरियत’ के सिर्फ एक पहलू को बयां करती है क्योंकि फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान के प्रोफेसर एरिन वेस्टगेट ‘बोरडम’ को पर्सनैलिटी डेवलपमेंट और नई चीजें सीखने के लिए जरूरी बताते हैं।
इसलिए आज रिलेशनशिप कॉलम में बोरडम के दोनों पहलुओं की बात करेंगे। जानेंगे कि किस स्थिति में बोर होना क्रिएटिविटी और रिलैक्सेशन के लिए बेहतर है और कब यह हमें नुकसान पहुंचा सकता है।
आखिर क्या है बोरियत
महानतम लेखकों में गिने जाने वाले लिओ टॉल्सटॉय की मानें तो ‘बोरियत इच्छाओं की इच्छा’ है। यानी आगे बहुत कुछ करने के लिए फिलहाल कुछ भी नहीं करते हुए शून्य में खोना।
बोर होना या बोरियत ऐसी स्थिति है, जिसमें इंसान को अपने मौजूदा हालात में मजा नहीं आता। आसपास की चीजों में उसका इंटरेस्ट खत्म हो जाता है। उसके पास कुछ भी मजेदार करने को नहीं होता और अक्सर यह सुनने को मिलता है कि ‘हम बैठे-बैठे बोर रहे हैं।’
दो तरह की होती है बोरियत, समझें अंतर
1. सुपरफिशियल बोरडम- यानी शॉर्ट टर्म बोरियत। इस स्टेज में इंसान बोर होने के बाद छोटी-मोटी चीजों से दिल को बहलाने की कोशिश करता है और कामयाब भी होता है। लाइन में खड़े होने पर, किसी का इंतजार करते हुए या सफर के दौरान इस तरह की बोरियत महसूस होती है।
2. प्रोफाउंड बोरडम- ऐसी स्थिति में कोई भी चीज या व्यक्ति आपका मन नहीं बहला पाते। यह बोरियत की एडवांस स्टेज है। इसमें इंसान कुछ नया और अलग हटकर करने की सोचता है। इसे लॉन्ग टर्म वाली बोरियत कह सकते हैं।
निगेटिव अर्जेंसी की वजह से बोरियत होती खतरनाक
बोरियत के बारे में आज तक जितनी भी रिसर्च हुई हैं, ज्यादातर में इसके फायदे ही गिनाए गए हैं। ऐसी ही एक स्टडी अमेरिका की वॉशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी में हुई। इसमें पाया गया कि बोर होने की स्थिति में ही लोगों के दिमाग का बायां हिस्सा एक्टिव होता है।
दिमाग का यह हिस्सा नॉर्मली इनएक्टिव रहता है। बोर होने या खाली महसूस करने की स्थिति में लेफ्ट फ्रंंटल एक्टिव होकर इंसान की क्रिएटिविटी को बढ़ा देता है।
लेकिन पिछले दिनों हुई कुछ रिसर्च में पाया गया कि निगेटिव अर्जेंसी की वजह से बोरियत वेलबीइंग को नुकसान भी पहुंचा सकती है। दरअसल, निगेटिव अर्जेंसी एक मानसिक स्थिति है, जिसमें तनाव, बोरियत या मुश्किल से निकलने के लिए नुकसान पहुंचाने वाले कदम उठाते हैं।
उदाहरण के लिए अगर कोई शख्स नॉर्मल है तो वह झगड़े की स्थिति में विवाद को सुलझाने की कोशिश करेगा। दूसरी ओर, अगर शख्स निगेटिव अर्जेंसी बिहेवियर वाला हुआ तो वह झगड़े के बाद शराब या किसी और नशे की ओर देखेगा।
इसी निगेटिव अर्जेंसी बिहेवियर की वजह से बोरियत खतरनाक साबित हो सकती है। अगर इससे बचा जाए तो हर स्थिति में बोरियत फायदेमंद है।
न्यूटन के उदाहरण से समझिए बोरियत के फायदे और नुकसान
बात 1726 के वसंत की है। इंग्लैंड में प्लेग की बीमारी फैली हुई थी। बिल्कुल कोविड की ही तरह लॉकडाउन लगा था। लोग अपने-अपने घरों में कैद थे।
महानतम वैज्ञानिकों में गिने जाने वाले सर आइजक न्यूटन भी उत्तरी इंग्लैंड में अपने घर पर थे। न्यूटन के पास करने को कुछ था नहीं तो खाली बैठे बोर हो रहे थे और घर में लगे सेब के पेड़ को ताक रहे थे। थोड़ी देर बाद उन्हें पेड़ से सेब नीचे गिरता नजर आया। उस बोरियत के बीच उनके दिमाग में यह सवाल उठा कि पेड़ से सेब नीचे ही क्यों गिरा, ऊपर क्यों नहीं गया?
यहीं से ग्रैविटी की खोज की शुरुआत हुई। पेड़ से सेब के गिरने से न्यूटन के मन में एक सवाल, एक जिज्ञासा पैदा कर दी और ये सवाल उन्हें ग्रैविटी की खोज तक लेकर गया।
इसके बाद ही उन्हें गुरुत्वाकर्षण का नियम समझ आया और फिर उनकी इस खोज ने पूरी दुनिया को फिजिक्स यानी भौतिक विज्ञान का बहुत बड़ा फॉर्मूला दे दिया।
सोचिए, अगर न्यूटन उस दिन बोरियत फील नहीं कर रहे होते तो क्या होता? या फिर वे सेब के नीचे गिरने के टेंशन में मयखाने की ओर निकल जाते, गुस्से में उसे उठाकर दूर फेंक देते तो क्या होता? संभवतः वह अपनी यूनिवर्सिटी में पहले ही खोज लिए गए साइंस के नियमों को ही पढ़ा रहे होते और दुनिया ‘लॉ ऑफ ग्रैविटी’ की महान खोज से बेखबर रह जाती।
लेकिन न्यूटन ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने बोरियत की स्थिति में पॉजिटिव और क्रिएटिव तरीके से सोचा और खुद के साथ-साथ पूरी मानवता को एक नायाब तोहफा दे गए।
बोरियत की स्थिति में न्यूटन की तरह दिमाग लगाकर और क्रिएटिविटी के सहारे हम भी खुद को या दूसरों को कुछ अच्छा दे सकते हैं। दूसरी ओर, ‘निगेटिव अर्जेंसी बिहेवियर’ के प्रभाव में सोचकर बोर होते-होते खुद को नुकसान भी पहुंचा सकते हैं। जाहिर-सी बात है, हममें से हर कोई न्यूटन वाला रास्ता ही अपनाना चाहेगा।
स्रोत: भास्कर